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रात / मृदुला सिंह

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अस्पताल के अंधकार में
उसके अंतर का अकेलापन
बह रहा चुपचाप
यह महामारी की त्रासद रात है
 
मन जल रहा
खिड़की की झिर्रियों से घुसती रोशनी से
निर्वासित है जिजीविषा
अधखुली आंखों में
वेंटिलेटर की प्रतीक्षा है अंतहीन
हाय /
देखो उधर!
हंसता है वर्तमान