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चान्द-1 / वन्दना टेटे

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हर रोज़ शाम चाँद
मेरे साथी की तरह
ऑफ़िस से निकलते ही
साथ हो लेता है
दोनों
गुमसुम-गुमसुम
पर बतियाते हुए ।

सड़कों पर की
चिल्लपों
पेड़ों बादलों की
लुका-छिपी
दिन भर की थकान भी
पर
अच्छा लगता है
उसक साथ चलना
गुमसुम-गुमसुम
पर बतियाते हुए ।

घर वाली अन्धेरी गली
आते ही कसक सी
उठ जाती है जुदा होने के नाम पर
और
फिर कल मिलने के वायदे के साथ
विदा लेते हैं हम
गुमसुम-गुमसुम ।