बहुत दूर मत जाया करो !
एक दिन के लिए भी नहीं,
क्योंकि —
क्योंकि मैं नहीं बता सकता तुम्हें,
भीतर की प्रत्यक्षानुभूति
दिन काफ़ी तनता जाता है,
और मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करता हूँ
इस तरह;
जैसे कि किसी ख़ाली स्टेशन पर
करता हूँ प्रतीक्षा —
किसी और ही जगह ठहरी हुई
उस रेलगाड़ी की
खो दिया है जिसने, अपने गन्तव्य का होश
बेवक़्त
मुझे छोड़ कर कभी मत जाना, प्राण !
एक घण्टे के लिए भी नहीं,
वेदनाओं का वह
तुहिन कण
दौड़ता है साथ,
वह धुआँ जो तलाशता है अपना घर
बह जाता है मेरे भीतर,
भटकता हुआ इस हृदय को
अवरुद्ध कर
ओह ! तुम्हारा छायाचित्र
कभी न घुल पाए
समुद्री तटों के ऊपर
तुम्हारीं पलकें कभी न फड़फड़ाएँ
देखकर के यह तन्हा फ़ासले
एक सैकेण्ड के लिए भी
मुझे छोड़कर मत जाओ !!!
क्योंकि,
वह लम्हा जब तुम जा चुकी
होगी मुझे छोड़कर
मैं दिग्भ्रमित होकर,
यह पूछता हुआ,
लगाता रहूँगा
पृथ्वी के ऊपर चक्कर —
तुम क्या मिलोगी मुझे फिर वापिस ?
या इस हालत में छोड़ कर मृत
जा चुकी होगी तुम सदा के लिए !
तनुज द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित