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भाषा / हर्षिता पंचारिया

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पता नहीं कितने तरीके
ईजाद किए है मनुष्य ने
तुम्हें समृद्ध बनाने के लिए।

हर कोस पर तुम्हारा
स्वरूप बदला है
पानी के साथ
पर स्मरण रहे
तुम्हारे ईश्वर ने
तुम्हारी आत्मा
को उतना ही छला है
जितना अँधेरा छलता है
रोशनी को।

छिली हुई भाषा परिष्कृत नहीं होती
बस असभ्यता की मोहर का ठप्पा
लिए एक ज़ुबान से दूसरी ज़ुबान
पर स्थानांतरित होती रहती है।

सुनो मेरी भाषा,
यदि कभी मेरा लहजा असभ्य हो
तो तुम मेरे ईश्वर तक मत पहुँचना।
क्योंकि
मेरा ईश्वर तुम्हारे
ईश्वर-सा छली नहीं है॥