Last modified on 7 मार्च 2022, at 22:31

प्रेम / हर्षिता पंचारिया

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:31, 7 मार्च 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हर्षिता पंचारिया |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.
जब जब भी मैं दोहारती रहती हूँ
कि मुझे तुमसे प्रेम है,
मुझे तुमसे प्रेम है
तो दरअसल मैं कहना चाहती हूँ
एक ही इंसान से बार-बार प्रेम करना
ज़िंदगी में "उबाऊ" जैसे शब्दों को समाप्त करने का तरीक़ा मात्र है।

2.
प्रेम ज़ाहिर करने के कितने तरीक़े है तुम्हारे पास,
पर तुम्हारा सिर्फ़ इतना कहना कि,
"दुनिया की हर शै तुम्हारे आगे फीकी है"
यक़ीनी तौर पर,
जीवन में मुझे कभी फीका महसूस नहीं होने देता।

3.
तुमसे प्रेम करने की तमाम वजहों को
निरस्त करने के बाद भी बचे रहने की सम्भावना में
अगर कुछ बचा रहेगा तो वह प्रेम रहेगा

जैसे जीने की तमाम सम्भावनाएँ नष्ट होने के बाद भी
बची रहती है तो सिर्फ़
"जिजीविषा" ।

4.
मैंने तुम्हारा प्रेम नितांत व्यक्तिगत रखा, इतना कि
हृदय की अभिव्यक्ति आँखों को भी पता नहीं चली

"मौखिकता की यात्रा करते हुए मेरा प्रेम बदहाल हो जाएगा"
इस एक बात को सोचने मात्र से ही मैं
अपराध बोध से घिर जाती हूँ।
जानते हो क्यों!

क्योंकि प्रेम सहचरों के प्रारब्ध में अपराध बोध की शृंखलाएँ अपरिमित होती हैं।

5.
तुम्हारे दिए प्रेम पत्र मैंने आज भी सम्भाले हुए है,
इसलिए नहीं कि वर्षोपरांत पीले पड़ चुके प्रेम पत्रों से कभी प्रेम में हरापन लौटेगा,

बल्कि इसलिए
क्योंकि
कुछ चीजों की उपस्थिति गालों का गुलाबीपन बचाए रखती है।

6.
देह से देह का संवाद
संवादों का नहीं, स्पर्श मात्र की भाषा है,
इसलिए

ये टूटी हुई चूड़ी,
ये छूटी हुई बिंदी,
और मेरी देह पर दिखते तुम्हारे प्रेम के चिह्न
प्रेम का भौतिक स्वरूप दिखाते हैं,
जबकि मेरे लिए रोमावलियों में निहित
तुम्हारा स्पर्श ही अत्यंत मुखर है।

तुम आओ और मेरी देह को छू लो बस,
मेरी आत्मा प्रेम के संवाद की भूखी है।

7.
एक लम्बे अंतराल के बाद
तुमसे मिलने के बावजूद,
तुम्हारे गले इसलिए भी नहीं लग सकी
ताकि तुम्हारे व्यस्तम कँधो को
मेरे अश्रुओं का भार कमजोर ना कर दे,
और तुम्हें लगता है
स्त्रियों के आँसू उन्हें कमजोर बनाते है।

8.
ऐसा नहीं है कि उसे "हाँ" कहने से
मुझे अच्छा लगेगा,
पर उसे बुरा ना लगें
इसलिए मैं उसे "ना" भी नहीं कह पाई
जीवन में ऐसे कितने ही "ना" है
जो समय के कंठ में रहकर स्मृतियों के गान बन गए।

9.
नदी के किनारे
रेल की पटरियाँ
और हम दोनो,

दुनिया को ये बताने के लिए ही बने है कि
प्रेम में साथ रहना औपचारिकता हो सकती है
पर प्रेम में साथ चलना अनिवार्यता है

10.
आँखों से बयाँ होकर लब तक ठहर जाते है
दुनिया में ऐसे कितने ही शब्द हैं,
जो बयाँ होकर खोना नहीं चाहते
"तुम्हें"
और
"प्रेम" के
इस "अनाम रिश्ते" को!