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यात्राएँ / हर्षिता पंचारिया

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1.
अक्सर हर नई मुलाक़ात में पूछा जाता है
मेरा परिचय!
और मैं हंसकर बता देती हूँ
हर्षिता पंचारिया
सिवाय नाम के मेरे पास शेष बताने जैसा है ही क्या!

और इस बात को लेकर मैं
सोचती हूँ, हँसती हूँ
और कहना चाहती हूँ कि,
मेरे नाम के अतिरिक्त
बताने को कभी कुछ शेष रहे भी नहीं।

2.
पैरों ने झेली पीड़ा
हर यात्रा की
पर मेरे ख़ूबसूरत और कोमल पैरों को देखकर
ये अंदाज़ा क़तई मत लगाना कि,
मैंने कोई यात्रा ही नहीं की।

आँखों के नीचे के काले घेरे मेरे सहयात्री है
और ये सफ़ेद होते झड़ते बाल मेरा सामान,
जिनके बदलने और गुम होने की
सूचना तक दर्ज नहीं कराई।

क्योंकि मैं जानती हूँ
यात्राओं का दुःख कह देने भर से कम नहीं होगा,
हाँ! उपहास का केंद्र ज़रूर बनेगा।

3.
एक लम्बी यात्रा पूरी करने के लिए,
हम कितनी छोटी-छोटी यात्राएँ करते है
इन छोटी-छोटी यात्राओं का रोमांच मेरे लिए
"स्थान" से परे "साथ" का होता है


अंतिम यात्रा का रोमांच बना रहे
इसलिए लम्बी यात्रा के दौरान
मैंने सिर्फ़ तुम्हारी स्मृतियों को थामा।

अब मुझे सिर्फ जानना था कि,
अलविदा कहने के बाद
तुम्हारे हृदय के "रिक्त स्थान" की पूर्ति कैसे सम्भव होगी?