Last modified on 3 नवम्बर 2008, at 19:55

आत्मन‌‌‌! ऎसे ही / प्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:55, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> नदी भागी जाती है सागर की ओर प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नदी भागी जाती है
सागर की ओर
पाँवों पर झुक कर
लीन हो जाती है
यह नमस्कार की नित्यलीला है

आत्म‌न
ऎसे ही नमस्कार करता हूँ ।