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आस्था - 12 / हरबिन्दर सिंह गिल

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यह प्रकृति का सत्य है
प्रार्थना
कभी व्यर्थ नहीं जाती।
यह तभी होता है
जब उसके शब्द
कन्ठ से न निकल कर
आत्मा से निकलें।
वैसे तो मानव
चारों तरफ
पूजा-स्थलों का
जाल बिछा रहा है
परंतु फिर भी
भगवान के द्वार से
निराश लौट रहा है।

यह शायद
इसलिये हो रहा है
उसका अपना दिल
शैतान मस्तिष्क का
गुलाम होकर रह गया है
और अपनी ही आत्मा में
रोती मानवता की सिसकियाँ
नहीं दे रही हैं, सुनाई।
फिर कैसे, मानव की प्रार्थना
जिसके शब्दों में
स्वार्थ की, आ रही हो बू
पूजा की थाली में
रखे पुष्प को
कर पाएगी सुगंधित।