Last modified on 3 नवम्बर 2008, at 20:51

आश्चर्य / प्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> नदी बहती थी इससे बड़ा आश्चर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नदी बहती थी इससे बड़ा आश्चर्य क्या था
वृक्ष झूमते थे उन्मत्त
यह कम नहीं था अवाक‌‌‍ होने के लिए
आकाश से जल नहीं, वही बरसता था
भीगने से इन्कार कर
चकित होने का अवसर कैसे चूक जाता

चूक जाता तो आश्चर्य-- यह पोंगरी
बाँसुरी कैसे बन पाती!