Last modified on 3 नवम्बर 2008, at 20:56

होने की सुगंध / प्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> यही तो घर नहीं और भी रहता हूँ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यही तो घर नहीं और भी रहता हूँ

जहाँ-जहाँ जाता हूँ रह जाता हूँ
जहाँ-जहाँ से आता हूँ कुछ रहना छोड़ आता हूँ
जहाँ सदेह गया नहीं
वहाँ की याद आती है
याद में जैसे रह लेता हूँ
तो थोड़ा-सा रहने का स्पर्श
वहाँ भी रह जाता है

जो कुछ भी है जितना भी
नहीं भी जो है जितना भी

वहाँ-वहाँ उतना-उतना रहने की इच्छा से
एक धुन निकलती है

इस धुन में घुल जाता हूँ
होने की सुगन्ध के साथ।