पहली मई की सौगात
माँ और बाप दोनों एक पाँत
ताकि ज़िन्दगी हो ऐसी
रहे न मुफ़लिसी
हमारी भी यही बात ।
हरी-हरी शाख़ें हैं
लाल है परचम ।
सिर्फ़ कोई कायर ही
सहता है ग़म ।
मई की हरियाली
खेतों में उमड़ पड़ी है बाली ।
फ़सल हो बेशुमार
मिलाओ हाथ चार
हमारा पेट न रहे ख़ाली ।
हरे-भरे खेत हैं
लाल है परचम ।
रोज़गार मिले हमें
रोटी न हो कम ।