Last modified on 25 मई 2022, at 07:41

दहलीज़ / अनिमा दास

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:41, 25 मई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अनिमा दास }} {{KKCatKavita}} <poem> कुछ शेष जो रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ शेष जो रह गया है ..
तेरी दहलीज पर ,एक दिन
छोड़ आऊँगी
देखना , तेरे आँगन के
आसमाँ पर
बादल बन, ठहर जाऊँगी ।

बरसूँगी रह- रहकर
जब तू तन्हा होगा
आँखें भी नम होंगी तेरी
उदास मैं , लौट आऊँगी ।
कुछ शेष जो रह गया है
तेरी दहलीज पर , एक दिन
छोड़ आऊँगी ।

जिन सपनों को बोया था तूने
मेरी पलकों पर कभी
उन्हें बिस्तर पर तेरे
सलीके से रख आऊँगी
खामोशी के दो चार शब्द
तेरी जुबाँ से , चुरा लाऊँगी ।

कभी पूछा न था तुझे
क्यों मौसम- सा तू
बदलता रहा
जहाँ मैं लहराती थी
संग कभी
जवाँ कलियों की तरह?

कुहासे भर आँखों में
दर से तेरे चली आऊँगी,
कुछ शेष जो रह गया है
तेरी दहलीज पर ,एक दिन
छोड़ आऊँगी ।

कुछ शेष जो रहा गया है
तेरी दहलीज पर , एक दिन
छोड़ आऊँगी ।
-0-