Last modified on 6 नवम्बर 2008, at 01:08

भाई-बहन / हरीशचन्द्र पाण्डे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:08, 6 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीशचन्द्र पाण्डे |संग्रह=}} <Poem> भाई की शादी में ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भाई की शादी में ये फुर्र-फुर्र नाचती बहनें
जैसे सारी कायनात फूलों से लद गई हो

हवा में तैर रही हैं हँसी की अनगिनत लड़ियाँ
केशर की क्यारियाँ महक रही हैं

याद आ गई वह बहन
जो होती तो सारी दिशाओं को नचाती अपने साथ

जिसका पता नहीं चला
गंगा समेत सारी गहराईयाँ छानने के बाद भी...

और बहन की शादी में यह भाई
भीतर-भीतर पुलकता
मगर मेंड़ पर संभलता, चलता-सा भी

कुछ-कुछ निर्भार
मगर बगल का फूल तोड़े जाने के बाद पत्ते-सा
श्रीहीन...।