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याद / देवेन्द्र कुमार

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            धूप जब
            दिशाओं में फैलेगी
            तुम न कहोगे जो
            वह कह लेगी

सुने को और
अनसुनी करके
दूर-दराजों में
तिनके भर के
            याद तुम्हारी
            नई जगह लेगी

हर-भरा सन्नाटा
टूटेगा
ऐसा कोई अंकुर
फूटेगा
            जाने का रास्ता
            सुबह देगी

आएगी बात
घूम-फिर करके
दाँतों को अँगुली पर
गिन करके
            मुँह के अन्दर ज़ुबान
            रह लेगी