२० अप्रैल, १९५५ के दिन उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले के फुसावली गाँव में जन्में सूरजपाल चौहान प्रतिबद्ध दलित साहित्यकार हैं । कविता, कहानी व आत्मकथा के दो भाग प्रकाशित कर चौहानजी ने दलित साहित्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध की है । सरकारी कार्यालयों में भोगे यथार्थ को निर्भीकता से प्रस्तुत करनेवाले सूरजपालजी ने सवर्णों की खोखली नीति, पाखण्डी वृत्ति व उनके द्वारा किये जाते अत्याचारों पर जिस बेबाकी से प्रकाश डाला है, उतनी ही सच्चाई व ईमानदारी से दलित वर्ग में मौजूद भेदभाव व प्रपंच पर भी अपनी लेखनी चलायी है । दयाशंकर त्रिपाठीजी ने सही कहा है – “वे जिस अधिकार के साथ सवर्ण-समाज का नंगापन उघारते हैं, उसी प्रकार दलित समाज की हकीकतों और कमजोरियों का भी साक्षात्कार हमें करवाते हैं ।”
बजरंग बिहारी तिवारी भी ‘धोखा’ कहानी संग्रह की भूमिका में लिखते हैं –
“….प्रतिबद्धता प्रायः कुछ चीजों को छुपा ले जाती है । दुनिया भर पर रोशनी डालती है, फटकारती है लेकिन खुद को कभी प्रकाश-वृत्त में नहीं लाती, स्वपरीक्षण नहीं करती । सूरजपाल चौहान के लिए प्रतिबद्धता सहूलियत भरा मामला नहीं है । वह जितना ‘औरों’ के प्रति निर्मम है उतना अपने और ‘अपनों’ के प्रति कठोर । ‘अन्तर’, ‘एकता का ढ़ोल’ और ‘धोखा’ जैसी लघुकथाएँ यही साबित करती हैं ।”
सूरजपाल चौहान की प्रकाशित दलित कृतियाँ इस प्रकार हैं –
कविता संग्रह –
१. प्रयास, १९९४ (प्रकाशन वर्ष)
२. क्यों विश्वास करूँ, २००४
३. कब होगी वह भोर, २००७
४. वह दिन जरुर आएगा, २०१४
कहानी संग्रह :-
१. हैरी कब आएगा, १९९९
२. नया ब्राह्मण, २००९
३. धोखा, २०११
आत्मकथा :-
१. तिरस्कृत, २००२
२. संतप्त, २००६
जीवनी :-
मातादीन
लघुनाटिका :-
छू नहीं सकता, २०००
इसके अलावा बालगीत, संस्मरण, कई चिन्तनात्मक लेख आदि भी प्रकाशित हैं । सम्पादन कार्य भी बखूबी निभाया है ।