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सिलसिला करना / प्रेमलता त्रिपाठी

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मुखर तुमसे रही मैं मत गिला करना ।
हृदय के पास प्रिय तुम हो मिला करना ।

किया था दूर कब हमने तुम्हें मन से,
रहो यूँ पास मेरे मत हिला करना ।

दिखे मुस्कान मुख पर सब थकन भूलें,
अधर पर गीत हो वह सिलसिला करना ।

खुशी आवेश में तन-मन उमड़ता है,
मिले खुशियाँ हजारों तुम खिला करना ।

भरे मन में विकारों को मिटाएँ हम,
सजाकर प्रेम की कुटिया किला करना ।