Last modified on 6 नवम्बर 2008, at 21:19

रिश्ते-6 / निर्मल विक्रम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:19, 6 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल विक्रम |संग्रह= }} <Poem> रिश्ते कभी अपने-बेगा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रिश्ते कभी
अपने-बेगाने
दूर-नज़दीक के नाम ढूंढ़ते हैं
जिस्म का ताप कभी ठंडा नहीं होता
कलेजे में धड़कती है लालसा
प्रेमी मृग बन कर
आँखों में ढलकते
ख़ून के मोती
जब कभी ख़ुमार बन कर उतर आते हैं
तभी किसी संदली सुबह
नीले आकाश में उड़ने को
फड़फड़ाते
बंद अंधेरी कोठरी में
बेनाम रिश्ते

मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव