Last modified on 25 जून 2022, at 00:02

सुर्खियाँ आजकल / प्रेमलता त्रिपाठी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 25 जून 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन दुखाती रहीं झलकियाँ आजकल ।
लोग कसते जहाँ फब्तियाँ आजकल ।

कान कोकिल बचन को तरसते यहाँ,
क्रूर नारे बने सुर्खियाँ आजकल ।

एक दूजे मिले आपसी मेल हो,
बात है वह नहीं दरमिंयाँ आजकल ।

कहकहों में डुबाती रही शाम जो,
छा रहीं हैं अजब सुस्तियाँ आजकल।

नेह भरते कहाँ पर्व त्योहार अब,
है न मधुमास सी कांतियाँ आजकल

स्वार्थ मिटता नहीं बात कैसे बने,
यों न मीठी लगें बोलियाँ आजकल ।

लौट फिर शांति के राह पर हम चलें,
प्रेम भेजे वही अर्जियाँ आजकल ।