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दृढ़भाव रहता है / प्रेमलता त्रिपाठी

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रोक ले हमको न कोई मार्ग क्षमता है ।
फूल या काँटे मिले दृढ़ भाव रहता है ।

आग पानी का समन्वय है कहाँ संभव,
कार्य कारण मेल से होती सुगमता है।

भीरु कातर की दशा कमजोरिया मन की,
आत्म बल से दूर होती यह विषमता है।

लक्ष्य लेकर बढ़ चलें हम भाग्य हाथों में,
हो चुनौती पूर्ण राहें कर्म फलता है।

चित्त निर्मल चाहिए यदि भाव बंधन हो,
हो निराशा प्रेम जीवन पीर सहता है।