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विविधता / नेहा नरुका

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तुम पीपल का पेड़ हो
और मैं आम
न तुम मुझे पीपल बनने की कहना
न मैं तुम्हें आम

एक तरफ़ बाग़ में तुम खड़े होगे
और एक तरफ़ मैं

मेरे फल तुम्हारे पत्ते चूमा करेंगे
और तुम्हारे फल मेरे पत्तों को आलिंगन में भर लेंगे

जब बारिश आएगी
हम साथ-साथ भीगेंगे

जब पतझड़ आएगा
हमारे पत्ते साथ-साथ झरेंगे

धूप में देंगे हम राहगीरों को छाँव
अपनी शाखाओं की ओट में छिपा लेंगे हम
प्रेम करने वाले जोड़ों की आकृतियाँ

हम साथ-साथ बूढ़े होंगे
हम अपने-अपने बीज लेकर साथ-साथ मिलेंगे मिट्टी में

हम साथ-साथ उगेंगे फिर से
मैं बाग़ के इस तरफ़, तुम बाग के उस तरफ़
न मैं तुम्हें अपने जैसा बनाऊँगी
न तुम मुझे अपने जैसा बनाना

अगर हम एक जैसा होना भी चाहें तो यह सम्भव नहीं
क्योंकि इस संसार में एक जैसा कुछ भी नहीं होता
एक माता के पेट में रहने वाले दो भ्रूण भी एक जैसे कहाँ होते हैं…

फिर हम-तुम तो दो अलग-अलग वृक्ष हैं, जो अपनी-अपनी ज़मीन में गहरे तक धँसे हैं

हम किसी बालकनी के गमले में उगाए गए सजावटी पौधे नहीं
जिसे तयशुदा सूरज मिला, तयशुदा पानी मिला और नापकर हवा मिली

हम आम और पीपल हैं !