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आकीन / चंद्रप्रकाश देवल

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अभरोसा सूं छिलौछिल बगत में
अपां खुद रौ थोड़ौ-थोड़ौ अंस देय
घणौ दोरौ उपायौ हौ आकीन
जिणरी मौजूदगी में
खोल लेवता बेहिचक मन

अेक दूजा नै परसता निजरां सूं
उगाय लेवता
अेक दूजा री आंख में
गोड़िया वाळौ बाग
जिणरी डाळ-डाळ लटकती
नंगधड़ंग इंछावा
लाज बायरी
अेक निकेवळौ आकीन
जिकौ इत्तौ ठस्स-ठोस हौ
केक आंगळी लागतां ई खणखणावतौ
इण खणखणाट में
जाग जावती कनै सूती उजास री दुनिया
अर वौ हाबगाब
जांण वौ अंधारा राज में इज चालण वाळौ सिक्कौ व्है
अेक भरोसैदार आकीन
जिणरै ओळावै
कांयस में चावता जद ‘रिसेस’ व्है जावती
आकरै तावड़ै बिरखा
भूत-भूतणी परणाय देवता मिनटां में

जिणनै ओसीसा री खोळी में लुकायां
मीठा सपना आवता
सिनांन रा टब में घोळियां
डील सूं सुगंध आवती
आयस रा पड़ता दिनां में बणतौ
जिकौ म्हारै धूजता हाथ री गेडी
म्हारी मगसी दीठ रौ चसमौ
आवगी जूंण री पोतै-जमा
इणरौ कांई करूं
दूजा किणी रै कांई अरथ रौ

कदैई तौ थूं उणरी पाछी तिथना पूछती
सायधण
अैड़ा खांटी आकीन रौ कांई व्हियौ
अेक अणसंभाळ
छाय देवै सै कीं धूड़-धमासा सूं
चूकती पळपळाट यूं इज आथमै
रंां रै उगटणा री जात।