Last modified on 25 जुलाई 2022, at 01:10

अनुवाद / विशाखा मुलमुले

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 25 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विशाखा मुलमुले |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब वह गुनगुनाये नहीं
तब समझना वह किसी सोच में है
जब वह सोच में है
तब तुम उसकी आंखें पढ़ना

तुम चाहो तो पढ़ सकते हो
उसकी धड़कन
खुश होगी तो ताल में होगी
कोई रंज - ओ - ग़म होगा
तो सूखे पत्तों की तरह कांप रही होगी

तब तुम उसके माथे पर बोसा देना
उसकी आत्मा को नया जीवन देना
नयनों से झर - झर झरेंगे तब आँसू
उन बून्दों का तुम अनुवाद करना

तुम्हारी गिरह में फिर वह स्वतंत्र होगी
हँसेगी , खिलखिलायेगी , उन्मुक्त होगी
रोम - रोम नवगीत कह उठेगा
उस गीत के तुम नायक बनना

देखो ! कितना आसान है न एक स्त्री को समझना