Last modified on 10 नवम्बर 2008, at 01:47

जाड़ों में / अज्ञेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:47, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} <Poem> : लोग बहुत पास आ गए हैं। पेड़ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लोग बहुत पास आ गए हैं।
पेड़ दूर हटते हुए
कुहासे में खो गए हैं
और पंछी (जो ऋत्विक हैं)
चुप लगा गए हैं।