Last modified on 10 नवम्बर 2008, at 02:04

जीवन-छाया / अज्ञेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:04, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} <Poem> : पुल पर झुका खड़ा मैं देख रह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पुल पर झुका खड़ा मैं देख रहा हूँ,
अपनी परछाहीं
सोते के निर्मल जल पर--
तल-पर, भीतर,
नीचे पथरीले-रेतीले थल पर :
अरे, उसे ये पल-पल
भेद-भेद जाती है
कितनी उज्ज्वल
रंगारंग मछलियाँ।