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सन्ध्या / गाव्रियल गरसिया मारकेस / अनिल जनविजय

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मेरी लूसिया ने अपने दोनों पैर
नदी में लटका रखे हैं क्या ? ख़ैर ... ।

आकाश में चमक रहा है सिर्फ़ एक सितारा,
तीन विशाल चिनार के पेड़ों के ऊपर,
झाँक रहा है आसमान से वो भू पर।

मौन छाया हुआ है चारों ओर,
और एक मेंढक टर्रा रहा है घनघोर ।

कहीं रुका हुआ है वर्षा का जल
जिसमें सड़न बढ़ रही है पल-पल ।

किसी पारदर्शी घूँघट की तरह
चन्द्रमा की रोशनी में चमक रहा है जल हरा ।

नदी के दोनों किनारों के बीचोंबीच सूखे पेड़ का तना
ज्यों फिर से हो गया है हरा
चन्द्रमा का प्रकाश उस पर पड़ रहा घना ।

पानी को देखकर उभर आया है सपना मेरा,
दिखाई दे रहा है ग्रेनाडा का वो साँवला चेहरा ।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय