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ठेंगे से / कौशल किशोर

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आओ नाचे, गायें
मुंह न लटकायें, कमर हिलायें
डांस करें
वह कहती है
और लगती है गाने कि
आओ डांस करें, थोड़ा रोमांस करें

मैं कहता हूँ अभी इसका समय नहीं है
वह मुंह बिचकाती है
हूँ, समय कभी किसी का नहीं होता
उसे अपने अनुसार ढालना होता है, जीना होता है

मैं समझाता हूँ
यह लाक डाउन का समय है
सब घरों में बन्द हैं
बंद रहना ही जीवन है

ठेंगे से, मैं तो सदियों से बन्द रही हूँ
नहीं स्वीकारती
यह मेरा जीवन है
चाहे अकेले उड़ूं या तुम्हारे साथ या कोई और हो
या चाहे न उड़ूं

यह भी तो गिरफ्तार होना है
अपने मन के पिंजड़े में

नहीं, नहीं, मुक्त होना है
उस अभिशाप से
जिसे रोज-रोज नये विशेषण से सुसज्जित करते हो

देखता हूँ उसके चेहरे पर खौफ नहीं
न अन्दर का, न बाहर का
उसके डैने खुल गये थे।