Last modified on 10 नवम्बर 2008, at 21:35

उद्योग / जय गोस्वामी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 10 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |संग्रह= }} <Poem> ज़मीन छीन लेना ही, अहम ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम !
बेघर करना ही, अहम काम !
चलो गर्दनिया देकर खदेड़ दो,
उसके बाद खड़े करो,
हमारी छाती पर,
ऊँचे-ऊँचे उद्योग ! उद्धत समाज !

साथ में कुछेक पुलिस का होना, ज़रूरी है
वर्ना कैसे छल-बल से,
मुझे 'बाहरी आदमी' कहकर
मेरी हड्डी-पसली तोड़ेंगे, भइये?

आज से यही है गणतंत्र !
आज से यही है गणतंत्र !

बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता