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सात आदमी / नरेश गुर्जर

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हर आदमी के पास
एक वीणा है
जिसे वो
बजाना नहीं जानता

हर दूसरा आदमी कहता है
दुख एक स्वर है
जो पकड़ में नहीं आ रहा

हर तीसरा आदमी
उलझा हुआ है
विचारों को कसने में

हर चौथा आदमी
चारों ओर देख रहा है
इस उम्मीद से
कि कोई उसे देख ले

हर पांचवे आदमी का
नहीं है
उसके पास
अपना कोई परिचय

हर छठवें आदमी के पास
एक कहानी है
छल जिसका, मुख्य किरदार है

हर सातवें आदमी को
शिकायत है
हर पहले आदमी से!