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दुराव / मंजुला बिष्ट

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लौटी या
लौटाई गईं
ब्याही बेटियों के पालकों के दुःख
उन बेटों के पालकों जैसे बिल्कुल नहीं होते
जो रोज़गार खोकर सपरिवार लौटते हैं

बेटियाँ उखड़ी जड़ों के साथ पराई होकर लौटती हैं
बेटे साधिकार थर खड़े अपने पितृ-जड़ों की तरफ!

बेटियों के लौट जाने पर
माँ से बतियाते पिता के पास
जब व्याकरण सम्बंधित अशुद्धियाँ अधिक पाई जाने लगती हैं
तब माँ चोरी-छुपे दौड़ी चली जाती है
गाँव की उस बूढ़ी बुआ के पास ;
जो सोरास से बाँझ घोषित होकर लौटी थी
और अब तक भाईयों के आँगन में
अलगनी पर टँगी उतरन सी झूलती है

कालांतर में
आपस में गुर्राते-झीखते
बूढ़े माता-पिता खोजने लगते हैं
वह कुशल कूट शब्दावली
जहाँ बेटी की वापसी से बदली बयार को
भरसक छिपाया जा सकता है

क्योंकि अंत तलक
जो कुछ छिपा रह सकता है ,वही तो बच पाता है।