Last modified on 13 नवम्बर 2022, at 19:12

तदुपरांत / मंजुला बिष्ट

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजुला बिष्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अनेक बार बेवक्त बोल पड़ने के बाद
मौके पे चुप रहने का अभ्यास आता है

कुछेक क़ीमती चीज़ें छूट जाने के बाद
चुन लेने की आकंठ प्रतीक्षा आती है

परिंडे पर रखा घड़ा चटखने के बाद
घाट से उतरता कुम्हलाता जल याद आता है

सत्तासीन की उदासीनता देखने के बाद
नाखून पर सूखी नीली स्याही चिढ़ाती है

एक किशोर की आत्महत्या के बाद
बच्चों के निपट शांत कमरें साँस रोकते हैं

अनेक बेचैन पंक्तियाँ अधूरी रहने के बाद
वे कविता नहीं,कोई कहानी बनके लौटती है

स्वजनों के सम्मुख बारहा रोने-बिसूरने के बाद
उनसे मिली घृणा और उपेक्षा,मजबूत बनाती है

आदमी के भीतर स्वयं के लिए उठे विरोध के बाद
वह बाहर लड़ने-भिड़ने के लिए तैयार हो पाता है