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मियाद / मंजुला बिष्ट

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कितनी लंबी हो सकती है
शालीनता भरी एक चुप्पी की उम्र
यक़ीनन उतनी ही लंबी ;
जितनी बर्र के छत्ते में हाथ डालने से पूर्व
किसी मसखरे की देह सुरक्षित थी

कितनी देर तक टाला जा सकता है
एक निर्लज्ज मुस्कान का विरोध
यक़ीनन उतनी ही देर तलक ;
जब तक आत्मा सो रही हो
इस गहरे वहम में कि
आँखें स्थिति के अनुरूप शिष्टाचार सीख चुकी हैं

उम्र के किस पड़ाव तक
एक स्त्री बाबुल के घर को थोड़ा कम याद कर सकती है
यक़ीनन उस पल तक ;
जब-तलक उसका साथी आशा-निराशा के क्षणों में
उसके उच्छ्वासों पर अपनी सयंमित साँसों का आलिंगन देता रहे।