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दोहे-7 / मनोज भावुक

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मीरा, तुलसी, जायसी, भावुक, सूर, कबीर।
खींच सकल केहू कहाँ, जिनिगी के तस्वीर॥31॥

पइसे माई-बाप बा, पइसे बा भगवान।
पइसा सब पर छा गइल, धर्म-कर्म-ईमान॥32॥

मनीआर्डर के आस में, चूल्हा परल उपास।
 'भावुक' तहरा देश के, केतना भइल विकास॥33॥

पान-फूल से हम मिलब, भीतर से मुस्कात।
आईं हमरो द्वार पर, मत देखीं औकत॥34॥

टूट गइल सम्बंध तs राउर कवन कसूर।
पतझड़ में पतई सदा, रहे पेड़ से दूर॥35॥

जिये-मरे के शर्त पर, करत रही जे काम।
मंजिल तक जाई उहे, ऊहे दी परिणाम॥36॥

 'भावुक' जेकरा पास बा, चौबीस घंटा काम।
ओकरा ना लागे कबो, जाड़ा, गरमी, घाम॥37॥

प्यास बुताइल ना कबो, धवनी मीलो-मील।
जहवाँ भी गइनी उहाँ, मिलल रेत के झील॥38॥

भरल खजाना आस के, बाटे जेकरा पास।
उहे बा सबसे धनी, ऊहे बा बिन्दास॥39॥

पड़ल हवेली गाँव में 'भावुक' बा सुनसान।
लइका खोजे शहर में, छोटी मुकी मकान॥40॥