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दोहे-10 / मनोज भावुक

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हमरा हालत पर हँसे, हमरे अब तस्वीर।
'भावुक' कइसन मोड़ पर, ले आइल तकदीर॥67॥

ऋतु बसंत के बा इहाँ, बस छन भर अवकात।
जिनिगी-भर साथे रहे बस खाली बरसात॥68॥

जहवाँ हम रोपले रहीं किसिम-किसिम के फूल।
समय उगा के चल गइल, उहवें आज बबूल॥69॥

'भावुक' एगो घर बदे, छछनत रहल परान।
बाकिर, कहवाँ घर बनल, भलहीं बनल मकान॥70॥

साँस-साँस में भूख बा, साँस-साँस में प्यास।
तब कइसे ई मन भरी, जबले बाटे साँस॥71॥

'भावुक' हमरा पास बा, बावन बिगहा खेत।
बाकिर कवना काम के, जब सब रेते-रेत॥72॥

अरमानन के भीड़ बा, बाकिर दिल बा छोट।
एही से अक्सर इहाँ, दिल में लगे कचोट॥73॥

चलते-चलते राह में, आवे अइसन मोड़।
जहवाँ आपन साँस भी, देला संगत छोड़॥74॥

हमरा ई का हो गइल, 'भावुक' तहरा जात।
तहरे रट, तहरे फिकिर, तहरे खाली बात॥75॥

भावुक छोटे उम्र में एतना फइलल नाँव।
कुकुरो पीछे पड़ गइल, कउओ कइलस काँव॥76॥