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एक रात / अमरजीत कौंके

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एक रात मैं निकला
अपने ख़्वाबों की ताबीर के लिए
तो मैंने देखा
कि शहर के हर मोड़, हर चौराहे पर
बैठे हैं कुत्ते
मोटे-मोटे झबरे कुत्ते

मैं बहुत डरा
और बहुत घबराया
लेकिन फिर भी बचता-बचाता
शहर के दूसरे किनारे पे
निकल आया

अचानक
एक कुत्ते ने मुझे ध्यान से देखा
और सही सलामत पाया
बस यही देख कर
उसने मुझे काट खाया

कहने लगा-
तू कुत्तों की बस्ती से
बच कर कैसे निकल आया ।