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नाभि में / पीयूष दईया

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सच है
मुझे जिस्म की तलाश कभी नहीं रही
सब मिलतीं चली गईं
मै भोगता रहा
--प्यार

काश! धूल झोंकता समय
अपना पाता

छूट गया जो
जिस्म की नाभि में
अमर है