Last modified on 21 जनवरी 2023, at 03:15

फुलझड़ी / अशोक शाह

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:15, 21 जनवरी 2023 का अवतरण (' धरती के सुदूर देहरी पर रखा जलता हुआ दीया देखा प्रक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


धरती के सुदूर देहरी पर रखा जलता हुआ दीया देखा प्रकम्पित प्रकाष में अनापेक्षित चींटियाँ लौट रही थीं घर पंक्तिबद्ध मानो पृथ्वी के मजदूर लपक रहे हो घर भरते जल्दी-जल्दी डेग

नहीं जानता इस दीपावली के शुभ मुहूर्त में पहँुच पाँएगें घर लिए हाथों में एक फुलझड़ी अवनि की आखिरी छोर पर खडे़ प्रतिक्षारत अपने मासूमों के लिए