Last modified on 22 जनवरी 2023, at 23:16

माँ / बाबा बैद्यनाथ झा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 22 जनवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबा बैद्यनाथ झा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सही ढंग से हरदम माँ का,
करना है सम्मान हमें।
श्रेष्ठ स्वर्ग से भी माँ होती,
यह रखना है ध्यान हमें॥

जन्म दिया फिर पालपोस कर,
हमें पढ़ाकर शिक्षा दी।
इस जग में जीना है कैसे,
सही नीति की दीक्षा दी।
मेरी माँ मेरी माँ कहकर,
दोनों भाई लड़ते थे।
समझा देती जब माँ उसके,
पैरों पर हम पड़ते थे।

उसके निर्देशन में ही तो,
मिल पाया सद्ज्ञान हमें।
श्रेष्ठ स्वर्ग से भी माँ होती,
यह रखना है ध्यान हमें॥

पढ़ा लिखा कर माँ ने हमको,
अधिकारी बनवा डाला।
शिक्षित अति सुन्दर कन्या से,
पुनि विवाह करवा डाला।
हुई अचानक मृत्यु पिता की,
माँ पर वज्राघात हुआ।
यह वैधव्य महा दुख होता,
समझो झंझावात हुआ।

पड़ी आपदा में थी माँ तो,
लेना था संज्ञान हमें।
श्रेष्ठ स्वर्ग से भी माँ होती,
यह रखना है ध्यान हमें।

एक दूसरे के हिस्से में,
माँ को जब देना चाहा।
लगे झगड़ने आपस में ही,
नहीं एक लेना चाहा।
सब सम्बन्ध भुला कर माँ को,
वृद्धाश्रम में दे डाला।
दूर किया उसको पुत्रों ने,
जिनको हाथों से पाला।

कालचक्र के आगे देना,
पड़ता है प्रतिदान हमें।
श्रेष्ठ स्वर्ग से भी माँ होती,
यह रखना है ध्यान हमें॥