मेघ न आए ।
सूखे खेत किसानिन सूखे,
सूखे ताल-तलैयाँ,
भुइयाँ पर की कुइयाँ सूखी,
तलफ़े ढोर-चिरैयाँ ।
आसमान में सूरज धधके,
दुर्दिन झाँक रहे ।
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे ।
मेघ न आए ।
सावन बीता, भादों बीते,
प्यासे घट रीते के रीते,
मारी गई फ़सल बरखा बिन,
महँगे हुए पिरीते ।
धन के लोभी दाँत निकाले,
सपने गाँठ रहे ।
बीज फोड़कर निकले अंकुर,
ऊपर ताक रहे ।
मेघ न आए ।
आए भी तो धुपहे बादल,
धूल-भरे चितकबरे बादल,
पछुवा के हुलकाए बादल,
राजनीति पर छाए बादल,
पूर्वोत्तर के पचन झकोरे,
धरती माप रहे ।
बीज फोड़कर निकले अंकुर
ऊपर ताक रहे ।
मेघ न आए ।
31 अगस्त 1987