वह उलहाने नहीं देती
कहती है साफ़-साफ़
देती है सूझ-बूझ
जिसमें नहीं मीन-काफ़।
दुनिया बदलने का
दम, मंसूबे,
रात में बँधाती,
दिन में सँवारती।
वह कवि की
अन्तर्मुखी-अपराजित
वाणी है — वह !
14 दिसम्बर 1987
वह उलहाने नहीं देती
कहती है साफ़-साफ़
देती है सूझ-बूझ
जिसमें नहीं मीन-काफ़।
दुनिया बदलने का
दम, मंसूबे,
रात में बँधाती,
दिन में सँवारती।
वह कवि की
अन्तर्मुखी-अपराजित
वाणी है — वह !
14 दिसम्बर 1987