Last modified on 1 फ़रवरी 2023, at 09:25

श्रम का सूरज / शील

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:25, 1 फ़रवरी 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शील |अनुवादक= |संग्रह=लाल पंखों वा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तपने लगा है सिर पर,
दुनिया के श्रम का सूरज ।

इस वक़्त को हंगामामय —
मौसम से गुज़रना होगा ।

आएगा शीत-युद्ध की —
धरती पर इंकलाब ।

हँसते हुए, गाते हुए —
आग पे चलना होगा ।

मार्च 1985