Last modified on 1 अप्रैल 2023, at 17:04

चिन्ता से नहीं चिन्तन से / भवानीप्रसाद मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 1 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उदासी से रोज़ मिलो
और बातें करो उससे तो वह
ख़ुशी के मुक़ाबले ज़्यादा
मज़ा देने लगती है
और तुममें वह ख़ुशी के मुक़ाबले
ज़्यादा दिलचस्पी लेने लगती है

उसके घनिष्ठ हो जाने पर अपने से
देखोगे तुम कि
हो गए हो तुम ग़ुम
और तुम्हारे आसपास और भीतर
छा गई है एक शान्ति

ख़ुशी की भ्रान्ति और हलचल और दौड़धूप
या तो समाप्त हो गई है,
बन्द हो गई है
या वह तुम्हारे आसपास से भीतर
और भीतर से आसपास आ-जा कर
एक परिपूर्ण छन्द हो गई है ।