Last modified on 2 अप्रैल 2023, at 16:51

कुछ लोग / भवानीप्रसाद मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 2 अप्रैल 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ लोग
प्रजातंत्र मर गया कहकर
उदास हैं

जैसे ज़िन्दा था कभी
वह बेचारा

लोगों को तो
उदास होने का कोई
बहाना चाहिए

जैसे उस दिन कह दिया
हम लोगों ने 'छोटे' से
कि आज संक्रान्ति है
तुम्हें नहाना चाहिए

और वे उदास हो गए
बेचारे
दिल्लगी करने का अपना
स्वभाव तक भूल गए

और हम लोग जिन्हें
दिल्लगी कभी-कभी सूझती है
उन्हें उदास देखकर
अपनी सफलता पर फूल गए !

30-3-1976