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कविता लिखने का सही वक़्त / कमल जीत चौधरी

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पड़ोसी का झण्डा जला
झोपड़ी को भूखा सुला
बालन पर पानी डलवाया जा रहा है
नावों को जलाकर
चाशनी में डूबे दरबार में
लिजलिजे एक राजा का
स्तुतिगान गाया जा रहा है
मार्शल लॉ लगाकर
राष्ट्रीय पर्व मनाया जा रहा है

दीमक खाए हुए लोग
फेसबुक पर
कुल्हाड़ियों से लड़ने की बातें कर रहे हैं
सच से मुख मोड़ रहे हैं
शिक्षक - मंच छोड़ रहे हैं

फ़ोटो शूट करवाते इतिहासकार
प्रेस विज्ञप्तियों को
सबसे प्रामाणिक तथा विश्वस्त
दस्तावेज़ बता रहे हैं

दुनिया का सारा संगमरमर
उद्घाटन - शिलाओं का रूप ले चुका है

देश की सुरक्षा के नाम पर
जननेता गिरफ़्तार कर लिए गए हैं
राजनेता अपने ही बुतों का
अनावरण कर रहे हैं
हम किराये के नारे लगा रहे हैं

गाँधी सेवा सदन में
चीन - निर्मित वस्तुओं की प्रदर्शनी लगी है
गाँधीवादी कम्युनिकेशन स्किल कोर्स करवा रहे हैं
कम्युनिस्ट वाल मार्ट का मुक़ाबला
सेल लगाकर कर रहे हैं
धरती की नसबन्दी करवाकर
दुनिया के चन्द घराने
मंगल ग्रह पर प्लॉट बेच रहे हैं
नदियों को ताला लगाकर
चाबियाँ काले कुओं में फेंक दी गई हैं
सपनों का गर्भपात करवाया जा रहा है
रातें लिंग परिवर्तन करवा रही हैं

मुर्दे और मर्दों में फ़र्क न महसूसते
औरतें दूध सुखाने के टीके लगवा रही हैं

उधर झुण्ड का सरताज
बच्चों की सामूहिक कब्रें खुदवा रहा है
इधर मीडिया फूलों व हीरों से भरा
सबसे महँगा प्रेम प्रस्ताव दिखा रहा है

आँगन में मुर्दा फूँक
मेरे गाँव के बच्चे चिता की आग सेंक रहे हैं
...
यह कविता लिखने का सही वक़्त है ।