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आज ये मन/ कविता भट्ट

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आज ये मन

आज ये आँखें
देखती रही राह तुम्हारी
पलकें मूँदकर डूबी रही सपनों में तुम्हारे
आज मेरे ये कान
तरस गए आहट तुम्हारी सुनने को
मीठी हँसी मीठे बोल तुम्हारे सुनने को
आज मेरा ये तन
अतृप्त सा तड़प गया
स्पर्श तुम्हारा पाने को
आज का ये दिन
सूना-सूना कार्तिक की लम्बी रात सा
जेठ की गर्मी और भादों की बरसात सा
आज ये मन
हो गया कितना विकल दूरी से तुम्हारी
तरसा कितना खातिर तुम्हारी
धोखा देकर छोड़ गया मेरा साथ
और साथ तुम्हारे हो गया.
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मूल: डॉ. कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
आजु यू हिरदै /अवधी अनुवाद: रश्मि विभा त्रिपाठी

आजु ई आँखीं
टोहइ करिन बाटि तुम्हरी
पलकन का तोपि
बूड़इ करिन सपनन माँ तुम्हारइ
आजु हमरे ई कान
अहकि गे आरा तुम्हार श्रवनइ का
मीठ हाँसी मीठ बैना तुम्हरे श्रवनइ का
आजु हमरा ई चोला
छँउकान अस तलफि गा
परस तुम्हार लहइ का
आजु क्यार यू दिनु
सून कातिक कै लम्बी राति अस
ज्याठ कै गरमी अउर भदउँहाँ बरसाति अस
आजु यू हिय
तुम्हरे लाम ते भा बेकल केतना
तुम्हरे खातिर अहकिस केतना
चरका दइकै संघ छाँड़ि गा
अउर तुम्हरे सन हुइ गा।
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