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प्रभाष के प्रति / रणजीत

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प्रभाष के प्रति
मत चिंतित हो
साम्यवाद न जाने कैसा होगा?
साम्यवाद कोई भाग्य नहीं है
आसमान से नहीं उतरेगा
इसी धरा पर पैदा होगा
हमीं बीज बोएँगे उसके
सींचेंगे फिर रक्त-स्वेद से
पालेंगे, पोसेंगे
उसको बड़ा करेंगे हम ही
पशुओं से रखवाली भी हम ही रक्खेंगे
चाहे काँटेदार लगाने पड़ें तार भी
चाहे कुछ दिन उसे बाँधना पड़े कँटीली सीमाओं में
यह सब होगा तो बस इसीलिए तो होगा
साम्यवाद का छोटा पौधा
इक दिन बड़ा वृक्ष बन पाए
उसकी शीतल छाया में मानवता
सुख की साँस ले सके।
इन तारों की सीमाओं को
इतने ज़ोरों से मत देखो
कि आँखों के पर्दे पर से इस
पौधे की हस्ती ही धुँधली पड़ जाये
तार हमारा लक्ष्य नहीं है
मत चिंतित हो
साम्यवाद के सूत्र हमारे हाथों में है
जैसा तुम चाहोगे, मैं चाहूँगा
हम चाहेंगे, वैसा होगा
मत चिंतित हो
साम्यवाद न जाने कैसा होगा?