Last modified on 14 नवम्बर 2008, at 21:19

अंगूठे / अरविन्द श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:19, 14 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव |संग्रह= }} <Poem> बताओ, कहाँ मार...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बताओ, कहाँ मारना है ठप्पा
कहाँ लगाने हैं निशान
तुम्हारे सफ़ेद--धवल काग़ज़ पर

हम उगेंगे बिल्कुल अंडाकार
या कोई अद्भुत कलाकृति बनकर
बगैर किसी कालिख़, स्याही
और पैड के

अंगूठे गंदे हैं
मिट्ती में सने हैं
आग में पके हैं

पसीने की स्याही में ।