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आज फिर / रणजीत

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आज फिर तुम गुनगुनाई:
'किसी की आरज़ू हमसे नहीं जाती है ठुकराई'
आज फिर तुम्हारी वैसी ही ख़ुमारी से भरी
आँखें पलट कर मुस्कुराईं
फिर तुम्हारे हाथ काँपे
गाल चमके
अंगुलियों की गति तुम्हारी गड़बड़ाई
हो गया मालूम मुझको
आज फिर मैं
जानकर अनजान रह कर
स्वार्थ की आवाज़ को फिर प्यार की आवाज़ कहकर
छला जाऊँगा
फिर स्वयं को सफल अभिनय से तुम्हारे
भ्रमित करके थपथपाऊँगा
आज फिर
आज फिर तुम गुनगुनाई
'किसी की आरज़ू हमसे नहीं जाती है ठुकराई'