Last modified on 9 जुलाई 2023, at 23:31

शब्द आइना है / नवीन दवे मनावत

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:31, 9 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन दवे मनावत |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शब्द अगर
आईना होता
तो पहचानता
वह परछाई
जिसे घसीटा जाता है
लंबे रेगिस्तानी
रास्तों पर
प्राप्त करने को
वह खोह
जिसमे समा सके
आदमी की
तलाश और
चाह की मंजिल

शब्द अगर आईना
बनकर घूमता
उस जगह
जहाँ छिपाया जाता है
सूरज को!
दबाई जाती है
चांद की रोशनी को
तब वहाँ केवल
जुगनुओं की रोशनी में
मंत्रणाएँ होती हैं
तब उस समय
शब्द बताता
यथार्थ की कविता।

शब्द आइना बनकर
देखना चाहता है
कैसी बनावट होगी
आदमी की?
उसके अन्तर्रोदन की
पीड़ा और संवेदना
कैसी होगी?
और
एकांतित क्षण के
विचार
कैसे पनपते होंगे?

वस्तुतः
शब्द आइना ही होते हैं
जो बताते हैं
आदमी की औकात
कि वह कितना
गिरता है
या गिरे हुए को
उठाता है।
जिसकी तस्वीर
खींचता रहता है
हरदम शब्द रूपी
आईना