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अधूरी इच्छाएं / चित्रा पंवार

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जो अधूरी इच्छाएं
गांठ बनकर
रह जाती हैं
मन के किसी कौने में
दबी हुई
वही जन्मती हैं एक दिन
मां की कोख से बेटी बनकर।