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वनाकृतियाँ / नितेश व्यास

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पेड़ को कभी नहीं आये सपनें
मेज़
कुर्सी
खिड़की
दरवाज़े के
लेकिन मेरे सपनों के दरवाज़े पर
रोज़ आ-घिरती हैं
उनके अतीत की
उदास-उदास वल्कल-छायाऐं॥